
इच्छा मृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:- आज दिनांक: 9 मार्च 2018 की भारत की सर्वोच्च न्यायालय [Supreme Court] ने इच्छा मृत्यु [Wish death] पर एक बड़ा ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिसमे यह निर्णय दिया की जिस प्रकार से एक इंसान को भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 के अनुसार अपनी इच्छा नुसार सम्मान से जीने का हक है, उसी प्रकार से उसे अपने इच्छा से मरने का भी हक होना चाहिए। इसीको को आधार बनाकर सन्: 2005 में एक NGO द्वारा याचिका दायर की गई थी, इस याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट के 5 जाजो की खंडपीठ ने इस पर चर्चा करके उसमे कुछ Terms and Condition के साथ Passive Euthanasia इसे मंजूरी दे दी है|
और अगर आप इच्छा मृत्यु के बारे में नहीं जानते की इच्छा मृत्यु क्या होती है, तो आप दिनांक: 19 नवंबर 2010 में आई हृतिक रोशन की फिल्म “गुजारिश” देख लीजिए आप खुद ब खुद समझ जाएंगे कि इच्छा मृत्यु क्या होती है।
इच्छा मृत्यु का सबसे चर्चित केस अरुणा शानबाग का था, जो आपको याद ही होगा लेकिन उनकी इच्छा मृत्यु याचिका खारिज [ Petition dismissed ] कर दी गई थी। यह याचिका सन: 2011 में एक चर्चित पत्रकार पिंकी वीरानी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी, की अरूणा शानभाग पिछले 37 वर्षो से कोमा में एक ही बिस्तर पर है, अब वो फिर कोमा से उठ नहीं सकती तो उनको यूं तड़पने से अच्छा है, की उन्हे इच्छा मृत्यु दे दी जाय लेकिन उस समय उस याचिका को सर्वोच्च न्यायालय [Supreme Court] ने खारिज करके सुरक्षित रख दिया गया था और दिनांक: 18 मई 2015 में अरुणा शानभाग की मुंबई स्थित “के.ई.एम. अस्पताल” में स्वाभाविक मृत्यु हो गई ।
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इच्छा मृत्यु दो तरह से दी जाती है, एक तो होती है Active euthanasia और दूसरी है Passive Euthanasia.
- Active Euthanasia:- Active Euthanasia का मतलब है, की अगर कोई बिस्तर पर है और उसके ठीक होने की कोइ आशंका नहीं है तो उसे इंजेक्शन से जहर देखर इच्छा मृत्यु दे दी जाय।
- Passive Euthanasia:- Passive Euthanasia का मतलब है, की अगर कोई व्यक्ति वेंटिलेटर यानी लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है, और उसके ठीक होने की कोइ आशंका नहीं है, तो उसका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया जाय तो उसका ओक्सीजन बंद हो जाएगा और उस व्यक्ति की मृत्यु जाएगी। तो सर्वोच्च न्यायालय ने Active Euthanasia को मंजूरी न देकर Passive Euthanasia को मंजूरी दी है।
living will क्या है? [ What is This Living Will ]
Living Will का मतलब यह है, कि जैसे कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बनाता है, की मेरे मरने के बाद मेरी जो भी धन संपत्ति है, वह किसे मिलनी चाहिए इसी प्रकार से आपको इसमें भी जब आप चल फिर रहे होते है, तभी आपको एक Living Will Magistrate के सामने दो गवाहों की मौजूदगी में बनवाकर साईन करनी पड़ेगी की अगर मुझे किसी भी प्रकार की कोई गंभीर बीमारी [serious illness] हो जाय और मेरी बचने की कोई भी उम्मीद न ही ऐसी स्थिति में मुझे जबरन वेंटिलेटर पर न रखा जाय। इस नियम का उल्लंघन ना हो इसलिए कोर्ट इस Living Will की गंभीरता से तफ्तीश करेगी की कहीं ये व्यक्ति किसी के दबाव में तो नहीं आकर यह Living Will लिख रहा है। इसकी पुरी जांच पड़ताल के बाद ही उस इच्छा मृत्यु की Living Will को मंजूर किया जाएगा।
तो इस प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय ने इच्छा मृत्यु के लिए “Passive Euthanasia” को मंजूरी दी। और इच्छा मृत्यु के इस नए प्रावधान का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें [Terms and Condition] भी रखी हैं। ताकी कोई अपने निजी स्वार्थ के लिए इसका दुरुपयोग [Misuse] न कर सके।
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